कैसे हो इलाज, देश में छह लाख डॉक्टरों की कमी

कैसे हो इलाज, देश में छह लाख डॉक्टरों की कमी

सेहतराग टीम

किसी भी कल्‍याणकारी शासन में नागरिकों के स्‍वास्‍थ्‍य का मुद्दा सरकारों के लिए सर्वोच्‍च प्राथमिकता में होता है। भारत की अबतक की सरकारें भी ये दावा करती रही हैं कि वो आम जनता के स्‍वास्‍थ्‍य को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देती हैं। मगर इस दावे की हकीकत देखिये; भारत में आबादी के हिसाब से करीब 6 लाख डॉक्‍टरों की कमी है।

पूरे देश की हालत बदल डालने के वादे करके चुनाव लड़ रहे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी से यह सवाल क्‍यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि उनकी पार्टी ने इस देश के स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍था की ऐसी दुर्गति क्‍यों और कैसे कर दी। जब देश में बड़ी संख्‍या में मेडिकल कॉलेज खोलने की जरूरत थी तब कांग्रेस सरकारों ने इस बारे में अपने आंख-कान बंद कर लिए। हकीकत ये है कि कांग्रेस सरकारों ने देश के सालाना बजट का करीब एक फीसदी ही स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च किया।

वर्तमान मोदी सरकार का रिकार्ड भी इस मामले में फ‍िसड्डी ही है मगर इसे कांग्रेस से बेहतर इस मायने में कहा जा सकता है कि इस सरकार ने सिर्फ पांच साल के कार्यकाल में सालाना बजट का करीब डेढ़ फीसदी तक स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च करना शुरू किया है और सरकार का वादा है कि वो इस खर्च को धीरे-धीरे 3 फीसदी तक पहुंचा देगी।

खैर राजनीतिज्ञों के वादों का फैसला तो जनता इस चुनाव में करेगी मगर यदि हम स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र की बात करें तो भारत में अनुमानित तौर पर छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाइयां देने के लिए उचित तरीके से प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है जिससे जीवन बचाने वाली दवाइयां मरीजों को नहीं मिल पाती हैं।

अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिज़ीज़ डाइनामिक्स, इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ (सीडीडीईपी) की रिपोर्ट के मुताबिक ऐंटीबायोटिक उपलब्ध हो तब भी भारत में लोगों को बीमारी पर 65 फीसदी खर्च खुद उठाना पड़ता है। यह हर साल 5.7 करोड़ लोगों को गरीबी के गर्त में धकेलता है।

रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में हर साल 57 लाख ऐसे लोगों की मौत होती है जिन्हें एंटीबायोटिक दवाइयों से बचाया जा सकता था। यह मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। ये मौतें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों से हर साल होने वाली अनुमानित 700,000 मौतों की तुलना में अधिक हैं।

सीडीडीईपी ने यूगांडा, भारत और जर्मनी में स्‍वास्‍थ्‍य पक्षकारों से बातचीत की और सामग्री का अध्ययन कर कम, मध्य और उच्च आय वाले देशों में उन पहलुओं की पहचान की जिनके चलते मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं मिलती हैं।

भारत में हर 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है। इस तरह छह लाख डॉक्टरों की कमी है। भारत में हर 483 लोगों पर एक नर्स है यानी 20 लाख नर्सों की कमी है।

सीडीडीईपी में निदेशक रमणन लक्ष्मीनारायण ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाई के प्रतिरोध से होने वाली मौतों की तुलना में एंटीबायोटिक नहीं मिलने से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो रही है।

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